Tuesday, June 5, 2012

मेरे  मन  की  झरना 


कल-कल, कल-कल, झर-झर, झर-झर

बहती मेरे मन की झरना

कल्पनाओं की वादियों से

स्मृतियों की घाटियों से

होकर बहती मेरे मन की झरना.


इठलाती, बलखाती मेरे मन को सहलाती

बढती जाती मेरे मन की झरना

नई पुरानी यादों के,

सुख दुःख के अवसादों की

गीत गुनगुनाती जाती

मेरे मन की झरना

सुमन सरन सिन्हा 
मार्च १९,२००९ 

कठोर वचन


क्यूँ मनुष्य कठोर व कटु वचन कहता है

अपने मित्रों, बंधुओं व स्वजनों से दूर होता है

क्या ये संस्कारों के प्रदुषण का सूचक  है

या मिथ्या अभिमान और मानशिक अशिक्षा का द्योतक है

भगवान  श्री कृष्ण ने भागवत गीता मे कहा है

संसार मे सिर्फ देवगण या राक्षसग प्रवृति वाले मनुष्य हैं

और वे तामशिक, राजशिक या सात्विक गुणों के अधिपति होते हैं

और मनुष्यों के सारे संस्कार, इन्ही तीनों गुणों से प्रेरित होते हैं

अगर हमें अपने गुणों और संस्कारों से उपर उठना है

तो मृदु वचन, क्षमाशील और भागवत् भजन करना है


सुमन सरन सिन्हा 
मार्च १५,२००९ 
ना  तेरा  ना  मेरा 


ना धरती मेरी, ना अम्बर मेरा

इक तुम हो और, इक पैगम्बर मेरा

लोग कहते हैं कि, ये है मेरा, व वो है तेरा 

करते  हैं अभिमान कि, सब है उनका किया धरा

नहीं समझते, जिंदगी के गूढ़ रहस्यों को

वस्तुतः वो ना है मेरा, और ना है तेरा

आयेगा इक दिन, जब छोड़ जाओगे सब

तो क्या रक्खा है इन जज्बातों में

कि क्या है तेरा, और क्या है मेरा

कहता है सुमन, राम नाम है इक अचल धरोहर

जो रहा है सदा, और रहेगा सदा, तेरा व मेरा

सुमन सरन सिन्हा
मेय ९,२००९

संवेदना


दिल की धड़कन और संवेदना

करती है व्यक्त, व्यथित मन की वेदना

और करती है संवेदनशीलता की झंकार

जैसे करती हों प्रर्दशित, हजारों सपनों को साकार

देती है हमारे मूर्त भावनाओं को आकर

और कभी करती है हमारी उन्मक्त इक्षाओं का तार तार

क्या ये है हमारी संचित संस्कारों की धरोहर
                      
जो करती है प्रदर्शन बार बार                      

या ये है हमारी कल्पनाओं की काल्पनिक संसार

सुमन सरन सिन्हा 
मार्च २४,२००९

प्यार की  परिभाषा 



दिखावटी प्रेम प्रदर्शन को, समझते हैं लोग प्यार की भाषा

वार्षिक वैलेंटाइन दिवस मनाकर, बदलते हैं इसकी परिभाषा

समर्थ अनुसार करते हैं लोग, खर्च लुभाने को

और होते हैं भ्रमित कि, निभा ली प्यार दिखाने को

ऐसे लोग करते हैं जतन , पर अपने स्वार्थ निहित

नहीं करता है सच्चा प्रेम, जो होता है प्रदर्शन रहित

सच्चा प्रेम नहीं ढूँढता, किसी प्रकार का अनुमोदन

और ना ही चाहता है, कीमती सौगातों का शोधन

अगर करते हो अपने प्रिये से, सच्चा प्रेम

करो प्रदर्शन प्रेम का नित्यदिन, दैनिक कर्मो में 

और करो प्रदान मानसिक सुख व शांति, सुकर्मो से

पड़ेगा उठाना दुःख व दर्द समान, प्रिये के हरेक अडचनों में 

औए सहना पड़ेगा पीडा, पर मधुर वचनों से

तभी होगा प्रर्दशित सच्चा प्यार

जो करेगा दूर अवसाद और करेगा प्रदान प्रेम का सार


सुमन सरन सिन्हा
अप्रैल ८, २००९


मेरे  मन  का मधुबन 



मेरे मन के मधुबन में, हुए पुष्पित रंग बिरंगे फूल

चहुँ और है हरियाली, और नहीं है कोई शूल 

नील गगन में है अच्छादित, श्याम वर्ण मेघ

वसंत ऋतु का है वर्चस्व, शीतल पवन पर नहीं है वेग

ओस कि चादर है बिछी, और पंछी कर रहे हैं शोर

प्रातःकाल कि बेला है, और हो रही है भोर

नभ करती धरती का चुम्बन, और न दिख रही है छोर

इस निश्छल धवल कि बेला को देख, नाचे सुमन मन मोर

शनै शनै खग, मृग, और पपीहा करने लगे हैं शोर

मेढक लगे करने टर टर, नाचत हँसनी और मोर

कलियाँ होने लगी प्रष्फुटित, और लगे करने हैं भंवरे गुंजन

नई भावनाओं और कामनाओं का, होने लगा है सृजन

सूरज की किरणों की आभा से, होने लगी है स्वेत नभ मंडल

दूर से दिख रही है आते हुए एक तत्त्वदर्शी, हाथ में लिए कमंडल

उनके चेहरे पर है तेज, और होठों पर मुस्कान

आ समीप दिया उन्हों ने, प्रेम पूर्वक अपनी पहचान

कहने लगे वत्स तू कहाँ था, किस अतीत के गर्त में छुपा था

मैंने ढूंढा तुमको एक हजार वर्ष तक

और मिलने पर कहते हो, शेष कर लूं साधना रुको तब तक

मैंने किया है प्रतीक्षा इतने जन्मों तक, थोडी और कर लेंगे तब तक

कहकर वो मुस्काए, और दिया वो दान

जो है अति दुर्लभ इस जन्म में पाना,सदगुरु कृपा वरदान

सुमन सरन सिन्हा

मार्च २३, २००९
मनुष्यों  के  प्रकार 



मनुष्य है एक ऐसा विलक्षण प्राणी, जिसके हैं सम आकार
बाहर से सब हैं एक मगर, अंदर से हैं इनके अनेक प्रकार
जो इस मर्म को, जाने अनजाने करता है अनदेखा
वो करता है अपने को प्रताडित, और खाता है धोखा
अगर हृदय है अति भावुक, तो सम्हालो अपने को कर ठीक
कवि सुमन करता है विश्लेषण, ले लो हमसे अनमोल सीख
                                                                         
१. अति मृदुभाषी

जो मनुष्य है अति मृदुभाषी, और करता है सदा बड़ाई
तो समझ लो अपने निज-हित हेतु, उसने तुम्हे चढाई
ऐसा मनुष्य करता है प्रदर्शन मृदु वचनों का, वाह्यरूप से
और करता है मृदुभाषा का इस्तेमाल, जैसे लोग करें तुरूप से
उनकी हरेक भाषा होती है, कर्णप्रिय  व निराली
जैसे हो सुराही सुरा का अति सुंदर, मगर खाली

२. मृदुभाषी

मनुष्यों मे है वो श्रेष्ठ, जो कहता है सदा मृदुवचन 
जिसकी बातें होती नहीं यथार्थ से परे, वे हैं जन सज्जन
जो कहे सच को सच व झूठ को झूठ, पर सच्चेमन
और नहीं खेलता भावनाओं से कह, कठोर व अति मृदु वचन

३. कटुभाषी

जो मनुष्य करता है वार्तालाप कटु, वो होता नहीं है वाकपटु
इनके होते हैं दो प्रकार - या तो सत्यवक्ता या गंवार
यदा कदा पहुंचाते हैं मन को चोट, और याद आता है साईं
इसलिए मन ना हो घायल ऐसे नरों से, दूर रहो दस हाथ भाई

सुमन सरन सिन्हा 
अप्रैल ८,२००९


सुखों का रस


दृढ  संकल्प और, आत्मिक विश्वास 
देता है मनोकामना पूर्ति, व सकल आस

क्या सही और क्या गलत का, अगर है कसमकस
तो रखो आस्था, विश्वास  व हरि भक्ति को वस

हरि चरण में करो न्योछावर
अगर पाना है सुख,शांति व वर

कहता है कवि सुमन ये रहस्य
यही है शांति व सुखों का परम रस


सुमन सरन सिन्हा
सितम्बर २४,२००९ 


संगीत

जब रोम रोम करे भागवद गीत

तब वो है प्रभु सेवा और अविरल संगीत

संगीत मे है नीरसता का शोषण

जो करता है अध्यात्मिक मन का पोषण

संगीत करती है शांत, अतृप्त आत्मा

और करती है जागृत, सुप्त परमात्मा

संपूर्ण ब्रह्माण्ड है  ध्वनित संगीत से

नटवर का नृत्य हो या नारद के गीत से

संगीत बिन, मनुष्य जड़ सामान

जैसे जल बिन मछली और तीर बिन कमान

करें श्रवण संगीत का लेकर प्रभु का नाम

मिलेगा परमशान्ति, सुख और होगा कल्याण

सुमन सरन सिन्हा 
मार्च २२,२००९ 

एक कविता


एक कविता

अवयक्त विचारों की सरिता

मानसिक मनोविज्ञान की संहिता

करती है भावों को व्यक्त

जैसे उन्मक्त धरोहर करे अभिव्यक्त

वक्तिगत विचारों का संकलन

नई पुरानी घटनाओं का प्रकरण

सांसारिक समस्याओं का जिक्र

अपनी विवस्ताओं का फिक्र

सफलताओं और असफलताओं पर विचार

सामाजिक नेतिकता का ह्राष व बढ़ता व्यभिचार

आर्थिक समस्याओं का आकलन

या अंतर्राष्ट्रीय परिस्थितियों का विवरण

प्रेम और मुहब्बत का प्रसंग

या मन प्राकृतिक सुन्दरता के संग

करती है प्रकाशित जग को जैसे सविता

एक कविता

सुमन सरन सिन्हा 
मार्च १५,२००९