Monday, September 17, 2012

मेरे मन के आँगन में 
इक्षाओं के इस गगन में 
होती है पुष्पित व प्रस्फुटित 
ये सांसारिक जगत की मोह व माया

कभी अपनों से तो कभी सपनों से
कभी मित्रों से तो कभी बंधुओं से 
होती है आसक्ति तो कभी विरक्ति 
ये सांसारिक जगत की मोह व माया 

कभी मन से तो कभी तन से 
कभी भोग विलास व धन से 
होती है ग्रसित 
ये सांसारिक जगत की मोह व माया 

कभी मान-सम्मान की अभिलाषा से 
तो कभी कुछ करने की लालसा से 
होती है आच्छादित 
ये सांसारिक जगत की मोह व माया 

अविरल बहती इन कामनाओं से 
पोषित मन की भावनाओं से 
होती है विषाक्त मन व काया 
ये सांसारिक जगत की मोह व माया 

कहता है कवि सुमन 
अगर पाना है वास्तविक मानशिक धन 
तो छोड़ना होगा अतिसय आशक्ति
और करना होगा प्रभु कामना व भक्ति 
तभी मिलेगा इस भवसागर से मुक्ति 

सुमन सरन सिन्हा 
कनाडा 
जुलाई ४, २०११ 
लो एक और नया साल आ गया है 


धरती पर ओस और नभ मंडल में जोस छा गया है 

लो एक और नया साल आ गया है 

कहीं पर खुशी की लहर व लाली,  और कही पे दुखों का कहर वाली 

लो एक और नया साल आ गया है


कोई होगा हर्षित व उल्लाषित, और कोई होगा वक़्त के मार से त्रासित 

लो एक और नया साल आ गया है 


कोई करेगा अपनि योजनाओं का निर्माण,  तो कोई है भयभीत उनसे, जो करेगा फरमान 

लो एक और नया साल आ गया है


अभी अभी गए साल की रात ने, अपनि अंतिम अंगड़ाई ली थी,  
और चांदनी ने अपनि बाहें फैलाई थी की 

लो एक और नया साल आ गया है


सबके घर आये खुशियाँ,  और बंधनवार सजे, हो सबका मंगलमय और घर से तिमिर तजे

इन शुभकामनाओं के साथ 
लो एक और नया साल आ गया है 

सुमन सरन सिन्हा
शुक्रवार  जनुअरी  ६, 2012
होली 

लहरा रही है चहुँ ओर, खुशियों  की दामन और चोली 
आओ इस वसंत के आगोह में, खुलकर खेलें होली 

बन्दुओं, बांधवों के संग  मिलकर, गीत मिलन के गाएं
स्वाद वो रसों की करें बारिश, और पूरी वो पकवान मिलकर खाएं 

चैती, फगुआ और  ठुमरी से,  हो वातावरण परिणित 
पायल की हो झंकार, और मन  के तार हो झंकृत 

राग, द्वेष  और ईर्ष्या का हो रंग, बदरंग 
और मन  हो प्यार,सध्भाव्नाओ और, भाईचारे के संग

तभी बनेगा संपूर्ण विश्व इक टोली  
गायेंगे हमसब मिलकर गीत मिलन के, उस होली 

सुमन सरन सिन्हा 
मार्च  १०, २०१२