मेरे मन के आँगन में
इक्षाओं के इस गगन में
होती है पुष्पित व प्रस्फुटित
ये सांसारिक जगत की मोह व माया
कभी अपनों से तो कभी सपनों से
कभी मित्रों से तो कभी बंधुओं से
होती है आसक्ति तो कभी विरक्ति
ये सांसारिक जगत की मोह व माया
कभी मन से तो कभी तन से
कभी भोग विलास व धन से
होती है ग्रसित
ये सांसारिक जगत की मोह व माया
कभी मान-सम्मान की अभिलाषा से
तो कभी कुछ करने की लालसा से
होती है आच्छादित
ये सांसारिक जगत की मोह व माया
अविरल बहती इन कामनाओं से
पोषित मन की भावनाओं से
होती है विषाक्त मन व काया
ये सांसारिक जगत की मोह व माया
कहता है कवि सुमन
अगर पाना है वास्तविक मानशिक धन
तो छोड़ना होगा अतिसय आशक्ति
और करना होगा प्रभु कामना व भक्ति
तभी मिलेगा इस भवसागर से मुक्ति
सुमन सरन सिन्हा
कनाडा
जुलाई ४, २०११