Sunday, November 29, 2015

ये प्यार क्या होता है?
(भाग - )

मेरे दिल जरा ध्यान से सुन
सपनो की दुनिया से बहार और कान लगा के सुन
मै तुम्हारे मर्ज की दवा जानता हूँ
और जो हो रहा है उथलपुथल तुम्हारे अंदर
उसका भी राज बताता हूँ
उठ रहा है जो भावनाओं का बवंडर तुम्हारे अंदर
छुपा रखा है तुमने चाहत का समंदर
मै सुमन समझाता हूँ क्यूंकि तू बेवजह ही रोता है
मेरे दिल जरा ध्यान से सुन की ये प्यार क्या होता है

सच्चा प्यार तो अपने भावनाओं का अभिसार होता है
उत्कल उत्कंठाओं और पोषित इक्षाओं का सार होता है
जिसमे प्रेम मिलन के आशाओं का संचार होता है
प्रियतम के लिए अपना दुःख और सुखों का प्रतिकार होता है
कुछ खोकर पाने को और सर्वस्व लुटाने को कहते हैं प्यार
मेरे दिल जरा ध्यान से सुन की होता है क्या प्यार

जैसे पर्वत से गिरती नदियां
रहती हो मिलने अपने सागर से बेक़रार,
हो बेचैन सागर को आगोश में लपटने
अपने अस्तित्व को नकार,
कुछ खोकर पाने को और सर्वस्व लुटाने को कहते हैं प्यार
मेरे दिल जरा ध्यान से सुन की होता है क्या प्यार

जैसे छितिज हो बेचैन और बेक़रार
अपने धरा से मिलने को तत्पर और तैयार,
अपनी उचाई छोड़ चाहता हो मिलने
रूप रंग और सौंदर्य को छोड़ चाहता हो लिपटने
अपने प्रियतम से हो कर धूल धूसरित और बाहों में सिमटने,
कुछ खोकर पाने को और सर्वस्व लुटाने को कहते हैं प्यार
मेरे दिल जरा ध्यान से सुन की होता है क्या प्यार

जैसे खुशबू ने किया आलिंगन फूलों को
छोड़ अपनी महत्वकांछा और सपनो को,
रहता है निसदिन और निरंतर करता है चुम्बन
अपने सुमन के कपोलों (पंखुड़ियों) को,
नहीं चाहता है वो पृथक संसार
और करता है अपने सर्वस्व को नकार,
कुछ खोकर पाने को और सर्वस्व लुटाने को कहते हैं प्यार
मेरे दिल जरा ध्यान से सुन की होता है क्या प्यार

जैसे मीरा ने चाहा श्याम को
किया ध्यान हर पल हर छन अपने राधेश्याम को,
ना रखी सुध अपने तन की या मन की
बस किया निरंतर सुमिरन अपने श्याम की,
हो गई मीरा अपने शयाम मे एकाकार
छोड़ सब मोह, माया और परिवार,
कुछ खोकर पाने को और सर्वस्व लुटाने को कहते हैं प्यार
मेरे दिल जरा ध्यान से सुन की होता है क्या प्यार

जैसे मजनू ने किया लैला से प्यार
किया दिल के दर्द को कविताओं मे साकार,
दर दर की खाइ ठोकरें अपने लैला के लिए
किया अपने जीवन को न्योछावर प्रेम पाने के लिए,
कुछ खोकर पाने को और सर्वस्व लुटाने को कहते हैं प्यार
मेरे दिल जरा ध्यान से सुन की होता है क्या प्यार

अब मेरे दिल जरा गौर से सुन, प्यार के होते हैं कितने ही रंग
कुछ भी हो जाये पर नहीं कर सकता नियति इसको भंग
क्यूंकि इसमें है चाहत की सबल लालसा जिसकी है कांति चतुरंग
कभी ये प्रेयशी के लिए तो कभी भाई, बहन और माता पिता के संग
ये तो निश्छल भावनाओं का है उद्घोषक और है इसके निराले ढंग


जैसे राजा राम ने अपने पिता का वचन और अटूट प्यार को निभाया
चौदह साल वन मे जाकर
वैसे ही सब कुछ पाकर भी त्यागा राजा भरत ने
और निभाया भाई का प्रेम राजसिंघासन को तज कर
इसलिए कुछ खोकर पाने को और सर्वस्व लुटाने को कहते हैं प्यार
मेरे दिल जरा ध्यान से सुन की होता है क्या प्यार

अब तो इस मतलबी जगत ने बदल दी है प्यार का सार
और अपनी जरूरतों के हिसाब से करते हैं प्यार का व्यापार
रखते हैं इक्षा पाने, अपने प्यार के प्रतिफलों का
और करते हैं कामना अपने उल्लू-सीधा करने का
करते हैं दूषित प्यार के दैविक संस्कारों का
और करते हैं संहार प्यार के मूल-भूत आधारों का

इसलिए ऐ मेरे दिल, नासमझ ना बन
और अपने अंतरात्मा की आवाज को कान लगा कर सुन
क्यूंकि निर्भय, निश्छल और निःस्वार्थ भावनाओं
को ही कहते हैं प्यार
ऐ मेरे दिल सुन की होता है क्या प्यार


सुमन सरन सिन्हा
टोरंटो, कनाडा
शनिवार, अक्टूबर ३१, २०१५

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