Sunday, November 29, 2015

ये प्यार क्या होता है?
(भाग -)

एक दिन मेरे दिल ने धीमी आहट करते हुए मेरे पास आया
नई नवेली दुल्हन सा सरमाया, जुबान से लड़खड़ाया, कुछ बड़बड़ाया
और मेरे कानो के पास आकर धीमे से फुसफुसाया
सुमन बता की ये प्यार क्या होता है?

क्यूँ मेरा मन कभी उत्तेजित और कभी निराश होता है
कभी गगन को छूने की इक्षा तो कभी अतिसय उदास रहता है
कभी निरभता से परिपूर्ण और कभी कोलाहल से भरा रहता है
क्यूं सदा किसी के पदचाप सुनने की कशिश सा बना रहता है
क्या ये मेरी दबी हुई उत्कंठाओं को प्रदर्शित करता है
सुमन बता की ये प्यार क्या होता है?

इस पतझड़ मे सुखे पत्तों के गिरने की आवाज से डरा रहता है
मेरा मन कभी कुछ होने के अहसास से घिरा रहता है
कभी मधुर मिलान के कल्पनाओ से ही सांसों मे सॉस रहता है
मन को कितना भी समझाऊं, मगर एक मानशिक प्यास सा रहता है
सुमन बता की ये प्यार क्या होता है?

गर्मी के भरे धूप मे भी सर्दियों सा अहसास रहता है
और शरद हवाओं के चलने पर भी मेरा तन तपिश से भरा रहता है
नीलाम्बर मे बादल के छाने पर और बारिश के बूंदों के टप टपाने पर
मेरा रोम रोम सिहरन से भरा रहता है
मन कभी भयकम्पित और कभी खुशियों से आछादित रहता है
सुमन बता की ये प्यार क्या होता है?

 कालिमा जब रात्रि को आगोश मे लेती है
जीव-जंतु और सकल प्राणी जब सुख से सोता है
झिंगरुओं के स्वर से वातावरण भय समान होता है
यदा कदा मेढंकों का टर टर्राना भी गुंजायमान होता है
ऐसी निश्छल रात्रि मे भी मेरा मन क्यूं अशांत रहता है
सुमन बता की ये प्यार क्या होता है?

जब मै चलती हूँ सड़कों पर तो, गिरेबान के ऊपर से झांकती नजरें
दर्शाती है उनके प्रश्न-शूचक भावों को, जैसे पूछती हो की हुआ क्या है
क्या किसी नटखट ने असमय छुआ क्या है
शर्म से मै किंकर्त्यमूढ हो जाती हूँ इसलिए
सुमन बता की ये प्यार क्या होता है?

अब ना तो मेरे मन की रहती है सुध ना तन की
ना रहती है घर की, समाज की और ना ही वतन की
ऐसी स्तिथि मे मै करूँ क्या जतन
जिससे की मै पाऊँ शांति और मानशिक धन
मै करती हु मिन्नतें बारम्बार
सुमन अब तो बता भी दे की ये प्यार क्या होता है?



सुमन सरन सिन्हा
टोरंटो, कनाडा
शुक्रवार, अक्टूबर ३०, २०१५

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